"श्रद्धा किसे कहते हैं? आदर्शों से प्यार को। दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं, एक ही आधार पर कि उनके भीतर श्रद्धा का समावेश हुआ। जो भी आप इतिहास में पढते हैं महापुरुषों के बारे में उनमें एक ही बात का उल्लेख मिलता है कि उनने सिद्धांतों को प्यार किया, आदर्शों को प्यार किया, मुसीबतें उठाईं, घर वालों का कहना नहीं माना, अपनी कमजोरियों का मुकाबला किया और श्रेष्ठ मार्ग पर बढते-बढते वहाँ तक चले गए, जैसे पर्वतरोही एवरेस्ट के शिखर पर बढते-चढते जा पहुँचते हैं। श्रद्धा व्यक्ति को उँचा उठाती है, सिद्धान्तों के प्रति निष्ठावान बनाती है, क्या करना चाहिए, इसके बारे में सेकेंडों में फैसला कर देती है। असमंजस नहीं रहता। यह करें कि न करें - यह सवाल ही पैदा नही होता। श्रद्धा अगर आपके पास है तो अपनी अंतरात्मा यह कहेगी कि हमको श्रेष्ठ काम करना चाहिए और आदर्शों की स्थापना करनी चाहिए। दुनिया क्या कहेगी, इसकी चिंता न करें।"
- पं श्रीराम शर्मा आचार्य
- पं श्रीराम शर्मा आचार्य
1 comment:
Pranam Devta,
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Chaitanya
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