ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Thursday 31 January, 2013

लगन और श्रम का महत्त्व

लगन आदमी के अन्दर हो तो सौ गुना काम करा लेती है। इतना काम करा लेती है कि हमारे काम को देख कर आपको आश्चर्य होगा। इतना साहित्य लिखने से लेकर इतना बड़ा संगठन खड़ा करने तक और इतनी बड़ी क्रांति करने से लेकर के इतने आश्रम बनाने तक जो काम शुरू किये हैं वे कैसे हो गए? यह लगन और श्रम है।

यदि हमने श्रम से जी चुराया होता तो उसी तरीके से घटिया आदमी हो करके रह जाते जैसे की अपना पेट पालना ही जिनके लिए मुश्किल हो जाता है। चोरी से, ठगी से, चालाकी से जहाँ कहीं भी मिलता पेट भरने के लिए, कपडे पहनने के लिए और अपना मौज, शौक पूरा करने के लिए पैसा इक्कठा करते रहते पर हमारा यह बड़ा काम संभव नहीं हो पता।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 22 से उधृत 

Wednesday 30 January, 2013

भटकना मत

लोभों के झोंके, मोहों के झोंके, नामवरी के झोंके, यश के झोंके, दबाव के झोंके ऐसे हैं की आदमी को लम्बी राह पर चलने के लिए मजबूर कर देते हैं और कहाँ से कहाँ घसीट ले जाते हैं। हमको भी घसीट ले गए होते। ये सामान्य आदमियों को घसीट ले जाते हैं। बहुत से व्यक्तियों में जो सिद्धांतवाद की राह पर चले, इन्ही के कारण भटक कर कहाँ से कहाँ जा पहुंचे।

आप भटकना मत। आपको जब कभी भटकन आये तो आप अपने उस दिन की, उस समय की मनः स्थिति को याद कर लेना, जबकि आपके भीतर से श्रद्धा का एक अंकुर उगा था। उसी बात को याद रखना की परिश्रम करने के प्रति जो हमारी उमंग और तरंग होनी चाहिए उसमें तो कमीं नहीं आ रही।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 21 से उधृत

Tuesday 29 January, 2013

पुरुषार्थ की शक्ति

सुधारवादी तत्वों की स्थिति और भी उपाहास्पद है। धर्म, अध्यात्म, समाज एवं राजनीतिक क्षेत्रों में सुधार एवं उत्थान के नारे जोर-शोर से लगाये जाते हैं। पर उन क्षेत्रों में जो हो रहा है, जो लोग कर रहे हैं, उसमें कथनी और करनी के बीच ज़मीन आसमान जैसा अंतर देखा जा सकता है। ऐसी दशा में उज्जवल भविष्य की आशा धूमिल ही होती चली जा रही है।

क्या हम सब ऐसे ही समय की प्रतीक्षा में, ऐसे ही हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें। अपने को असहाय, असमर्थ अनुभव करते रहें और स्थिति बदलने के लिए किसी दूसरे पर आशा लगाये बैठे रहें। मानवी पुरुषार्थ कहता है, ऐसा नहीं होना चाहिए।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 20 से उधृत 

Monday 28 January, 2013

पौरुष की पुकार

साहस ने हमें पुकारा है। समय ने, युग ने, कर्त्तव्य ने, उत्तरदायित्व ने, विवेक ने, पौरुष ने हमें पुकारा है। यह पुकार अनसुनी न की जा सकेगी। आत्म-निर्माण के लिए, नव-निर्माण के लिए हम काँटों से भरे रास्ते का स्वागत करेंगे और आगे बढ़ेंगे। लोग क्या कहते हैं और क्या करते हैं, इसकी चिंता कौन करे। अपनी आत्मा ही मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है। लोग अँधेरे में भटकते हैं, भटकते रहें। हम अपने विवेक के प्रकाश का अवलंबन कर स्वतः आगे बढ़ेंगे। कौन विरोध करता है, कौन समर्थन? इसकी गणना कौन करे। अपनी अंतरात्मा, अपना साहस अपने साथ है और वही करेंगे, जो करना अपने जैसे सजग व्यक्तियों के लिए उचित और उपयुक्त है।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 19 से उधृत

Sunday 27 January, 2013

बोलिए कम, करिए अधिक

'हमारी कोई सुनता नहीं, कहते कहते थक गए पर सुनने वाले कोई सुनते नहीं अर्थात उन पर कुछ असर ही नहीं होता' - मेरी राय में इसमें सुनने वाले से अधिक दोष कहने वाले का है। कहने वाले करना नहीं जानते। वे अपनी और देखें। आत्म निरीक्षण कार्य की शून्यता की साक्षी दे देगा। वचन की सफलता का सारा दारोमदार कर्मशीलता में है। आप चाहें बोले नहीं, थोडा ही बोलें पर कार्य में जुट जाइये। आप थोड़े ही दिनों में देखेंगे की लोग बिना कहे आपकी और खिचें आ रहे हैं। अतः कहिये कम, करिए अधिक। क्योंकि बोलने का प्रभाव तो क्षणिक होगा और कार्य का प्रभाव स्थाई होता है।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 18 से उधृत

Saturday 26 January, 2013

सुख-दुखों के ऊपर स्वामित्व

तुम सुख, दुःख की अधीनता छोड़ उनके ऊपर अपना स्वामित्व स्थापन करो और उसमें जो कुछ उत्तम मिले उसे लेकर अपने जीवन को नित्य, नया, रसयुक्त बनाओ। जीवन को उन्नत करना ही मनुष्य का कर्तव्य है इसीलिए तुम भी उचित समझो सो मार्ग ग्रहण कर इस कर्तव्य को सिद्ध करो।

प्रतिकूलताओं से डरोगे नहीं और अनुकूलता ही को सर्वस्व मान कर बैठे रहोगे तो सब कुछ कर सकोगे। जो मिले उसी से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उच्च बनाओ। यह जीवन ज्यों-ज्यों उच्च बनेगा त्यों-त्यों  आज जो तुम्हें प्रतिकूल प्रतीत होता है वह सब अनुकूल दिखने लगेगा और अनुकूलता आ जाने पर दुःख मात्र की निवृत्ति हो जायेगी।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 17 से उधृत

Friday 25 January, 2013

दुःखद स्मृतियों को भूलो

जब मन में पुरानी दुःखद स्मृतियाँ सजग हों तो उन्हें भुला देने में ही श्रेष्ठता है। अप्रिय बातों को भुलाना आवश्यक है। भुलाना उतना ही जरूरी है जितना अच्छी बात का स्मरण करना। यदि तुम शरीर से, मन से और आचरण से स्वस्थ होना चाहते हो तो अस्वस्थता की सारी बातें भूल जाओ।

माना कि किसी 'अपने' ने ही तुम्हें चोट पहुंचाई है, तुम्हारा दिल दुखाया है, तो क्या तुम उसे लेकर मानसिक उधेड़बुन में लगे रहोगे। अरे भाई! उन कष्टकारक अप्रिय प्रसंगों को भुला दो, उधर ध्यान न देकर अच्छे शुभ कर्मों से मन को केंद्रीभूत कर दो।

चिंता से मुक्ति पाने का सर्वोत्तम उपाय दुखों को भूलना ही है।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 16 से उधृत

Thursday 24 January, 2013

असफलताओं का कारण

हम दूसरों को बरबस अपनी तरह विश्वास, मत, स्वभाव एवं नियमों के अनुसार कार्य करने और जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य करते हैं। दूसरों को बरबस सुधार डालने, अपने विचार या दृष्टिकोण को जबरदस्ती थोपने से न सुधार होता है न आपका ही मन प्रसन्न होता है।

यदि हम अमुक व्यक्ति को दबाए रखेंगे तो अवश्य परोक्ष रूप से हमारी उन्नति हो जायेगी। अमुक व्यक्ति हमारी उन्नति में बाधक है। अमुक हमारी चुगली करता है, दोष निकलता है, मानहानि करता है। अतः हमें अपनी उन्नति न देख कर पहले अपने प्रतिपक्षी को रोके रखना चाहिए - ऐसा सोचना और दूसरों को अपनी असफलताओं का कारण मानना, भ्रममूलक है।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 15 से उधृत

Wednesday 23 January, 2013

प्रेम एक महान शक्ति

 प्रेम ही एक ऐसी महान शक्ति है जो प्रत्येक दिशा में जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होती है। बिना प्रेम के किसी के विचारों में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। विचार तर्क-वितर्क की सृष्टि नहीं हैं। विचारणा तथा विश्वास बहुकाल के सत्संग से बनते हैं। अधिक समय की संगति का ही परिणाम प्रेम है। इसीलिए विचार धारणा अथवा विशवास प्रेम का विषय है।

यदि हम दूसरों पर विजय प्राप्त करके उनको अपनी विचारधारा में बहाना चाहते हैं, उनके दृष्टिकोण को बदलकर अपनी बात मनवाना चाहते हैं, तो प्रेम का सहारा लेना चाहिए। तर्क और बुद्धि हमें आगे नहीं बढ़ा सकते हैं। विशवास रखिये की आपकी प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण सभी बातों को सुनने के लिए दुनिया विवश होगी।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 14 से उधृत

Tuesday 22 January, 2013

दूसरों पर निर्भर न रहो

जिस दिन तुम्हें अपने हाथ-पैर और दिल पर भरोसा हो जावेगा, उसी दिन तुम्हारी अंतरात्मा कहेगी की, 'बाधाओं को कुचल कर तू अकेला चल अकेला।'

जिन व्यक्तियों पर तुमने आशा के विशाल महल बना रखे हैं वे कल्पना के व्योम में विहार करने के सामान हैं। अस्थिर सारहीन खोखले हैं। अपनी आशा को दूसरों में संश्लिष्ट कर देना स्वयं अपनी मौलिकता का ह्रास कर अपने साहस को पंगु कर देना है। जो व्यक्ति दूसरों की सहायता पर जीवन यात्रा करता है। वह शीघ्र अकेला रह जाता है।

दूसरों को अपने जीवन का संचालक बना देना ऐसा ही है जैसा अपनी नौका को ऐसे प्रवाह में डाल देना जिसके अंत का आपको कोई ज्ञान नहीं।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत , पृष्ठ 13 से उधृत

Monday 21 January, 2013

अकेला चलो

महान व्यक्ति सदैव अकेले चले हैं और इस अकेलेपन के कारण ही दूर तक चलें हैं। अकेले व्यक्तियों ने अपने सहारे ही संसार के महानतम कार्य संपन्न किये हैं। उन्हें एकमात्र अपनी ही प्रेरणा प्राप्त हुई है। वे अपने ही आतंरिक सुख से सदैव प्रफुल्लित रहे हैं। दूसरे से दुःख मिटाने की उन्होंने कभी आशा नहीं रखी। निज वृतियों में ही उन्होंने सहारा नहीं देखा।

अकेलापन जीवन का परम सत्य है। किन्तु अकेलेपन से घबराना, जी तोडना, कर्तव्यपथ से हतोत्साहित या निराश होना सबसे बड़ा पाप है। अकेलापन आपके निजी आतंरिक प्रदेश में छिपी हुई महान शक्तियों को विकसित करने का साधन है। अपने ऊपर आश्रित रहने से आप अपनी उच्चतम शक्तियों को खोज निकालते हैं।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 12 से उधृत

Sunday 20 January, 2013

अंतःकरण के धन को ढूँढो

तुम्हें अपने मन को सदा कार्य में लगाये रखना होगा। इसे बेकार न रहने दो। जीवन को गंभीरता के साथ बिताओ। तुम्हारे सामने आत्मोन्नति का महान कार्य है और पास में समय थोडा है। यदि अपने को असावधानी के साथ भटकने दोगे तो तुम्हे शोक करना होगा और इससे भी बुरी स्थिति को प्राप्त होगे।

धैर्य और आशा रखो तो शीघ्र ही जीवन की समस्त स्थिति का सामना करने की योग्यता तुममें आ जाएगी। अपने बल पर खड़े होओ। यदि आवश्यक हो तो समस्त संसार को चुनोती दे दो। परिणाम में तुम्हारी हानि नहीं सकती। तुम केवल सबसे महान से संतुष्ट रहो। दूसरे भौतिक धन की खोज करते हैं और तुम अंतःकरण के धन को ढूँढो।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 11 से उधृत

Saturday 19 January, 2013

नम्रता, सरलता, साधुता, सहिष्णुता

सहिष्णुता का अभ्यास करो। अपने उत्तरदायित्वों को समझो। किसी के दोषों को देखने और उन पर टीका-टिपण्णी करने के पहले अपने बड़े-बड़े दोषों का अन्वेषण करो। यदि अपनी वाणी का नियंत्रण नहीं कर सकते तो उसे दूसरों के प्रतिकूल नहीं बल्कि अपने प्रतिकूल उपदेश करने दो।

सबसे पहले अपने घर को नियमित बनाओ क्योंकि बिना आचरण के आत्मानुभव नहीं हो सकता। नम्रता, सरलता, साधुता, सहिष्णुता ये सब आत्मानुभव के प्रधान अंग हैं।

दूसरे तुम्हारे साथ क्या करते हैं इसकी चिंता न करो। आत्मोन्नति में तत्पर रहो। यदि यह तथ्य समझ लिया तो एक बड़े रहस्य को पा लिया।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 10 से उधृत

Friday 18 January, 2013

अपने आपकी समालोचना करो

 जो कुछ हो, होने दो। तुम्हारे बारे में जो कहा जाए उसे कहने दो। तुम्हें ये सब बातें मृगतृष्णा के जल के समान असार लगनी चाहिए। यदि तुमने संसार का सच्चा त्याग किया है तो इन बातों से तुम्हें कैसे कष्ट पहुँच सकता है। अपने आपकी समालोचना में कुछ भी कसार मत रखना तभी वास्तविक उन्नति होगी।

प्रत्येक क्षण और अवसर का लाभ उठाओ। मार्ग लम्बा है। समय वेग से निकला जा रहा है। अपने संपूर्ण आत्मबल के साथ कार्य में लग जाओ, लक्ष्य तक पहुंचोगे।

किसी बात के लिए भी अपने को क्षुब्ध न करो। मनुष्य में नहीं ईश्वर में विशवास करो। वह तुम्हें रास्ता दिखायेगा और सन्मार्ग सुझाएगा।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 9 से उधृत

Thursday 17 January, 2013

मार्गदर्शन के लिए अपनी ही ओर देखो

साक्षात्कार संपन्न पुरुष न तो दूसरों को दोष लगता है और न अपने को अधिक शक्तिमान वस्तुओं से आच्छादित होने के कारण वह स्थितियों की अवहेलना करता है।

अहंकार से उतना ही सावधान रहो जितना एक पागल कुत्ते से। जैसे तुम विष या विषधर सर्प को नहीं छूते, उसी प्रकार सिद्धियों से अलग रहो और उन लोगों से भी जो इनका प्रतिवाद करते हैं। अपने मन और हृदय की संपूर्ण क्रियाओं को ईश्वर की और संचारित करो।

दूसरों का विश्वास तुम्हें अधिकाधिक असहाय और दुखी बनाएगा। मार्गदर्शन के लिए अपनी ही ओर देखो, दूसरों की ओर नहीं। तुम्हारी सत्यता तुम्हें दृढ़ बनाएगी। तुम्हारी दृढ़ता तुम्हें लक्ष्य तक ले जाएगी।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 8 से उधृत

Wednesday 16 January, 2013

आत्म समर्पण करो

 तुम्हें यह सीखना होगा कि इस संसार में कुछ कठिनाईयाँ हैं जो तम्हे सहन करनी हैं। वे पूर्व कर्मों के फलस्वरूप तुम्हें अजेय प्रतीत होती हैं। जहाँ कहीं भी कार्य में घबराहट थकावट और निराशाएँ हैं, वहां अत्यंत प्रबल शक्ति भी है। अपना कार्य कर चुकने पर एक और खड़े होओ। कर्म के फल को समय की धारा में प्रवाहित हो जाने दो।

अपनी शक्ति भर कार्य करो और तब अपना आत्मसमर्पण करो। किन्हीं भी घटनाओं में हतोत्साहित न होओ। तुम्हारा अपने ही कर्मों पर अधिकार हो सकता है। दूसरों के कर्मों पर नहीं। आलोचना न करो, आशा न करो भय न करो, सब अच्छा ही होगा। अनुभव आता है और जाता है। खिन्न न होओ। तुम दृढ़ भित्ति पर खड़े हुए हो।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 7 से उधृत 

Tuesday 15 January, 2013

हँसते रहो, मुस्कुराते रहो

उठो! जागो! रुको मत!!! जब तक की लक्ष्य प्राप्त न हो जाये। कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे, उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीं बढ़ता। अपने ही मन में कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन। जो अपने कर्तव्य कार्य में जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज में नहीं रहता उसे आतंरिक प्रसन्नता रहती है।

जीवन में उतार-चढाव आते ही रहते हैं।

हँसते रहो, मुस्कुराते रहो।

ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीं मुस्कुराए नहीं।

जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहता हैं, उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढना नहीं चाहिए।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 6 से उधृत

Monday 14 January, 2013

जीवन को यज्ञमय बनाओ

 मन में सबके लिए सद्भावनाएँ रखना, संयमपूर्ण सच्चरित्रता के साथ समय व्यतीत करना, दूसरों की भलाई बन सके उसके लिए प्रयत्नशील रहना, वाणी को केवल सत्प्रयोजनों के लिए ही बोलना, न्यायपूर्ण कमी पर ही गुजर करना, भगवान् का स्मरण करते रहना, अपने कर्तव्य पथ पर आरूढ़ रहना, अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में विचलित न होना-यही नियम हैं जिनका पालन करने से जीवन यज्ञमय हो जाता है। मनुष्य जीवन को सफल बना लेना ही सच्ची दूरदर्शिता और बुद्धिमता है।

जब तक हम में अहंकार की भावना रहेगी तब तक त्याग की भावना का उदय होना कठिन है।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ट 5 से उधृत 

Sunday 13 January, 2013

अंतरात्मा का सहारा पकड़ो

यदि तुम शांति, सामर्थ्य और शक्ति चाहते हो तो अपनी अंतरात्मा का सहारा पकड़ो। तुम सारे संसार को धोखा दे सकते हो किन्तु अपनी आत्मा को कौन धोखा दे सका है। यदि प्रत्येक कार्य में आप अंतरात्मा की सम्मति प्राप्त कर लिया करेंगे तो विवेक पथ नष्ट न होगा. दुनिया भर का विरोध करने पर भी यदि आप अपनी अंतरात्मा का पालन कर सके तो कोई आपको सफलता प्राप्त करने से नहीं रोक सकता।

जब कोई मनुष्य अपने आपको अद्वितीय व्यक्ति समझने लगता है और अपने आपको चरित्र में सबसे श्रेष्ठ मानने लगता है, तब उसका आध्यात्मिक पतन होता है।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 4 से उधृत 

Saturday 12 January, 2013

मानवमात्र से प्रेम करो

हम जिस भारतीय संस्कृति, भारतीय विचारधारा का प्रचार करना चाहते हैं, उससे आपके समस्त कष्टों का निवारण हो सकता है। राजनीतिक शक्ति  द्वारा आपके अधिकारों की रक्षा हो सकती है। पर जिस स्थान से हमारे सुख-दुःख की उत्पत्ति होती है उसका नियंत्रण राजनीतिक शक्ति नहीं कर सकती। यह कार्य आध्यात्मिक उन्नति से ही संपन्न हो सकता है।

मनुष्य को मनुष्य बनाने की वास्तविक शक्ति भारतीय संस्कृति में ही है। यह संस्कृति हमें सिखाती है कि मनुष्य-मनुष्य से प्रेम करने को पैदा हुआ है, लड़ने-मरने को नहीं। अगर हमारे सभी कार्यक्रम ठीक ढंग से चलते रहे तो भारतीय संस्कृति का सूर्योदय अवश्य होगा।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 3 से उधृत

Friday 11 January, 2013

आध्यात्मिक चिंतन अनिवार्य

 जो लोग आध्यात्मिक चिंतन से विमुख होकर केवल लोकोपकारी कार्य में लगे रहते हैं, वे अपनी ही सफलता पर अथवा सद्गुणों पर मोहित हो जाते हैं। वे अपने आपको लोक सेवक के रूप में देखने लगते हैं। ऐसी अवस्था में वे आशा करते हैं की सब लोग उनके कार्यों की प्रशंसा करें, उनका कहा मानें। उनका बढ़ा हुआ अभिमान उन्हें अनेक लोगों का शत्रु बना देता है। इससे उनकी लोकसेवा उन्हें वास्तविक लोक सेवक न बनाकर लोक विनाश का रूप धारण कर लेती है।

आध्यात्मिक चिंतन के बिना मनुष्य में विनीत भाव नहीं आता, और न उसमें अपने आपको सुधारने की क्षमता रह जाती है। वह भूलों पर भूल करता चला जाता है। और इस प्रकार अपने जीवन को विकल बना देता है।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
(हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 2 से उधृत)

Thursday 10 January, 2013

अपने को देखो

दूसरे के छिद्र देखने से पहले अपने छिद्रों को टटोलो। किसी और की बुराई करने से पहले यह देख लो की हममें तो कोई बुराई नहीं है। यदि हो तो पहले उसे दूर करो। दूसरों की निंदा करने में जितना समय देते हो उतना समय अपने आत्मोत्कर्ष में लगाओ। तब स्वयं इससे सहमत होगे कि परनिंदा से बढ़ने वाले द्वेष को त्याग कर परमानन्द प्राप्ति की और बढ़ रहे हो।

संसार को जीतने की इच्छा वाले मनुष्यो! पहले अपने को जीतने की चेष्टा करो। यदि तुम ऐसा कर सके तो एक दिन तुम्हारा विश्व विजेता बनने का स्वप्न पूरा हो कर रहेगा। तुम अपने जितेन्द्रिय रूप से संसार के सब प्राणियों को अपने संकेत पर चला सकोगे। संसार का कोई भी जीव तुम्हारा विरोधी नहीं रहेगा।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'