ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Saturday 5 March, 2011

धर्म-धारणा हर दृष्टि से उपयोगी

धर्म को प्रतिगामी एवं अन्धविश्वासी कहना आज का फैशन है। तथाकथित बुद्धिवादी प्रगतिशीलता के जोश में धर्म को अफीम की गोली कहते और उसे प्रगती का अवरोध ठहराते पाये जाते हैं, पर यह बचकानी प्रवृति मात्र है। गम्भीर चिन्तन से इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि मनुष्य के अन्तराल में आदर्शवादी आस्था बनाये रहना और नीति-मर्यादा का पालन करना धर्मधारणा के सहारे ही सम्भव हो सकता है। भौतिक लाभों को प्रधानता देकर चलने और सदाचरण के अनुबन्धों को तोड़ देने से उपलब्ध सम्पदाएँ दुष्प्रवृत्तियों को ही बढ़ायेंगी और अन्ततः विनाश का कारण बनेंगी।

 - पं श्रीराम शर्मा आचार्य
धर्म तत्त्व का दर्शन और मर्म (५३) - १.१

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