ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Sunday 10 April, 2011

गायत्री ही युग शक्ति क्यों?

मनुष्य मात्र को जीवन लक्ष्य तक पहुँचाने में समर्थ गुरुमंत्र - गायत्री महामंत्र

मनुष्य मात्र को उज्जवल भविष्य प्रदान करने में सक्षम गायत्री महाविद्या - सबके लिए सुलभ, सबके लिए साध्य, सबके लिए हितकर। इसे समझें, अपनाएँ, साधें और अनुपम लाभ उठायें।

ज्ञान (मार्गदर्शक बोध सूत्र)

१. ज्ञानपक्ष - गायत्री के ज्ञानपक्ष को उच्चस्तरीय तत्त्व ज्ञान की, ब्रह्मविद्या की, ऋतंभरा प्रज्ञा की संज्ञा दी जा सकती है। इसका उपयोग आस्थाओं और आकांशाओं को उच्चस्तरीय बनाने के लिए आवश्य क प्रशिक्षण के रूप में किया जा सकता है। ज्ञान-यज्ञ, विचारक्रांति आदि के बौद्धिक उत्कृष्टता के साधन इसी आधार पर जुटते हैं। लेखनी, वाणी एवं दृश्य-श्रव्य जैसे साधनों का उपयोग इसी निमित्त होता है। स्वाध्याय, सत्संग, चिंतन-मनन की गतिविधियाँ इसी के निमित्त चलती हैं।

विज्ञान (दिव्यता प्रदायक श्रेष्ठ उपचार)

२. विज्ञान पक्ष - मानवी सत्ता के अंतराल में इतनी महान संभावनाएँ और क्षमताएँ प्रसुप्त स्थिति में भरी पड़ी हैं कि उन्हें प्रकारांतर से ब्रह्मचेतना की प्रतिकृति (ट्रू कापी) कहा जा सके। अंतराल की प्रसुप्ति ही दरिद्रता है और उसकी जागृति में सम्पन्नता का महासागर लहलहाता देखा जा सकता है। साधना विज्ञान के माध्यम से जो उसे जगाने, साधने और सदुपयोग करने में समर्थ हो सके, वे महान कहलाये, स्वयं धन्य बने हैं और अपने संपर्क क्षेत्र के जन-समुदाय एवं वातावरण को धन्य बनाया है।

युगशक्ति - परिवर्तन व्यक्ति के अंतराल का होना है। दृष्टिकोण बदला जाना है। आस्थाओं का परिष्कार किया जाना है और आकांशाओं का प्रवाह मोड़ना है। सदाशयता का पक्षधर मनोबल उभारना है। आत्मज्ञान प्राप्त करना और आत्म-गौरव जगाना है, यही है युग परिवर्तन का मुख्य आधार। आतंरिक परिष्कार की प्रक्रिया ही व्यक्ति की उत्कृष्टता और समाज की श्रेष्ठता के रूप में परिलक्षित होगी। सारा प्रयास-पुरुषार्थ अन्तर्जगत् से सम्बंधित है। इसलिए साधन भी उसी स्तर के होने चाहिए। सामर्थ्य ऐसी होनी चाहिए, जो अभीष्ट प्रयोजन को पूरा कर सकने के उपयुक्त सिध्द हो सके। निश्चित रूप से यह कार्य आत्मशक्ति का ही है। उत्पादन और उपयोग उसी का किया जाना है।युग निर्माण के लिए इसी उर्जा का उपार्जन आधारभूत काम समझा जा सकता है। ऐसा काम, जिसे करने की आवश्यकता ठीक इन्ही दिनों है। सर्वसमर्थ परमात्मा के छोटे घटक आत्मा की मूर्छना को जागृति में बदल देने की प्रक्रिया आध्यात्म-साधना के विभिन्न विधि-विधानों में गायत्री उपासना ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वसुलभ मन गया है। आदिकाल से लेकर आज तक उस महाविज्ञान के सम्बन्ध में अनुभवों और प्रयोगों की विशालकाय शृंखला जुडती चली आई है। प्रत्येक शोध में उसकी नितनूतन विशेषताएँ उभरती चली आई हैं। प्रत्येक प्रयोग में उसके अभिनव शक्ति स्रोत प्रकट होते रहे हैं।

 - शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार

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