ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Monday 11 April, 2011

विविध धर्म-सम्प्रदायों में गायत्री मंत्र का भाव सन्निहित है

१. हिन्दू - ईश्वर प्राणाधार, दुखनाशक तथा सुखस्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर बढ़ाने के लिए पवित्र प्रेरणा दे।
(ऋग्वेद ३.६२.१०, यजुर्वेद ३६.३, सामवेद १४६२)
२. यहूदी - हे जेहोवा (परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ प्रदर्शन कर; मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा। 
(पुराना नियम भजन संहिता ५.८)

३. शिन्तो - हे परमेश्वर, हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें, परन्तु हमारे ह्रदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे ह्रदय में अभद्र बातों का अनुभव न हो। 
(जापानी)

४. पारसी - वह परमगुरु (अहुरमज्द - परमेश्वर) अपने ऋत तथा सत्य के भण्डार के कारण, राजा के सामान महान है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकार से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।
(अवेस्ता २७.१३)

५. दाओ (ताओ) - दाओ (ब्रह्म) चिंतन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है।
(दाओ उपनिषद्)

६. जैन - अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।

७ बौद्ध धर्म - मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, में संघ की शरण में जाता हूँ।
(दीक्षा मंत्र/त्रिशरण)

८. कनफ्यूशस - दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो, जैसा की तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।

९. ईसाई - हे पिता, हमें परीक्षा में न डाल; परन्तु बुराई से बचा; क्योंकि राज्य; पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।
(नया नियम मत्ती ६.१३)

१०. इस्लाम - हे अल्लाह, हम तेरी ही वंदना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा; उन लोगों का मार्ग, जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
(कुरान सूरा अल - फ़ातिहा)

११. सिख - ओंकार (ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता, समर्थ पुरुष, निर्भय, निर्वैर, जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरु कि कृपा से जाना जाता है।
(ग्रन्थ साहिब, जपुजी)

१२. बहाई - हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तुझे पहचानने तथा तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया हे। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तो ही है भयानक संकटों से तारनहार तथा स्व निर्भर।
(निगूढ़ वचन)

 - शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार

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