ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Friday 1 February, 2013

चिंतन और चरित्र का समन्वय

 अपने दोष दूसरों पर थोपने से कुछ काम न चलेगा। हमारी शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलताओं के लिए दूसरे उत्तरदायी नहीं वरन हम स्वयं ही हैं। दूसरे व्यक्तियों, परिस्थितियों एवं प्रारब्ध भोगों का भी प्रभाव होता है। पर  चौथाई जीवन तो हमारे आज के दृष्टिकोण एवं कर्तव्य का ही प्रतिफल होता है। अपने को सुधारने  का काम हाथ में ले कर हम अपनी शारीरिक और मानसिक परेशानियों को आसानी से हल कर सकते हैं।

प्रभाव उनका नहीं पड़ता जो बकवास तो बहुत करते हैं पर स्वयं उस ढांचे में ढलते नहीं। जिन्होंने चिंतन और चरित्र का समन्वय अपने जीवन क्रम में किया है, उनकी सेवा साधना सदा फलती-फूलती रहती है।

 -  पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 23 से उधृत

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