ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Saturday 9 February, 2013

धर्म का सार तत्व

अस्त-व्यस्त जीवन जीना, जल्दबाजी करना, रात दिन व्यस्त रहना, हर पल क्षण को काम-काज में ही ठूंसते रहना भी मनः क्षेत्र में भारी तनाव पैदा करते हैं। अतः यहाँ यह आवश्यक हो जाता है कि अपनी जीवन विधि को, दैनिक जीवन को विवेकपूर्ण बनाकर चलें। ईमानदारी, संयमशीलता, सज्जनता, नियमितता, सुव्यवस्था से भरा पूरा हल्का-फुल्का जीवन जीने से ही मनः क्षेत्र का सदुपयोग होता है और ईश्वर प्रदत्त क्षमता से समुचित लाभ उठा सकने का सुयोग बनता है।

कर्त्तव्य के पालन का आनंद लूटो और विघ्नों से बिना डरे जूझते रहो। यही है धर्म का सार तत्व।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत , पृष्ठ 31 से उधृत

No comments: