ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Wednesday 6 February, 2013

संतोष भरा जीवन जियेंगे

समझदारी और विचारशीलता का तकाजा है कि संसार चक्र के बदलते क्रम के अनुरूप अपनी मनः स्थिति को तैयार रखा जाए। लाभ, सुख, सफलता, प्रगति, वैभव, आदि मिलने पर अहंकार से एंठने की जरूरत नहीं है। कहा नहीं जा सकता की वह स्थिति कब तक रहेगी। ऐसी दशा में रोने-झींकने, खीजने, निराश होने में शक्ति नष्ट करना व्यर्थ है। परिवर्तन के अनुरूप अपने को ढालने में, विपन्नता को सुधारने में सोचने, हल निकलने और तालमेल बिठाने में मस्तिष्क को लगाया जाये तो यह प्रयत्न रोने और सिर धुनने की अपेक्षा अधिक श्रेयस्कर होगा।

बुद्धिमानी इसी में है की जो उपलब्ध है उसका आनंद लिया जाय और संतोष भरा संतुलन बनाए रखा जाये।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 28 से उधृत

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