ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Monday 21 January, 2013

अकेला चलो

महान व्यक्ति सदैव अकेले चले हैं और इस अकेलेपन के कारण ही दूर तक चलें हैं। अकेले व्यक्तियों ने अपने सहारे ही संसार के महानतम कार्य संपन्न किये हैं। उन्हें एकमात्र अपनी ही प्रेरणा प्राप्त हुई है। वे अपने ही आतंरिक सुख से सदैव प्रफुल्लित रहे हैं। दूसरे से दुःख मिटाने की उन्होंने कभी आशा नहीं रखी। निज वृतियों में ही उन्होंने सहारा नहीं देखा।

अकेलापन जीवन का परम सत्य है। किन्तु अकेलेपन से घबराना, जी तोडना, कर्तव्यपथ से हतोत्साहित या निराश होना सबसे बड़ा पाप है। अकेलापन आपके निजी आतंरिक प्रदेश में छिपी हुई महान शक्तियों को विकसित करने का साधन है। अपने ऊपर आश्रित रहने से आप अपनी उच्चतम शक्तियों को खोज निकालते हैं।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 12 से उधृत

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