ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Tuesday 15 January, 2013

हँसते रहो, मुस्कुराते रहो

उठो! जागो! रुको मत!!! जब तक की लक्ष्य प्राप्त न हो जाये। कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे, उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीं बढ़ता। अपने ही मन में कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन। जो अपने कर्तव्य कार्य में जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज में नहीं रहता उसे आतंरिक प्रसन्नता रहती है।

जीवन में उतार-चढाव आते ही रहते हैं।

हँसते रहो, मुस्कुराते रहो।

ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीं मुस्कुराए नहीं।

जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहता हैं, उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढना नहीं चाहिए।

 - पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 6 से उधृत

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