सुधारवादी तत्वों की स्थिति और भी उपाहास्पद है। धर्म, अध्यात्म, समाज एवं राजनीतिक क्षेत्रों में सुधार एवं उत्थान के नारे जोर-शोर से लगाये जाते हैं। पर उन क्षेत्रों में जो हो रहा है, जो लोग कर रहे हैं, उसमें कथनी और करनी के बीच ज़मीन आसमान जैसा अंतर देखा जा सकता है। ऐसी दशा में उज्जवल भविष्य की आशा धूमिल ही होती चली जा रही है।
क्या हम सब ऐसे ही समय की प्रतीक्षा में, ऐसे ही हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें। अपने को असहाय, असमर्थ अनुभव करते रहें और स्थिति बदलने के लिए किसी दूसरे पर आशा लगाये बैठे रहें। मानवी पुरुषार्थ कहता है, ऐसा नहीं होना चाहिए।
- पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 20 से उधृत
क्या हम सब ऐसे ही समय की प्रतीक्षा में, ऐसे ही हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें। अपने को असहाय, असमर्थ अनुभव करते रहें और स्थिति बदलने के लिए किसी दूसरे पर आशा लगाये बैठे रहें। मानवी पुरुषार्थ कहता है, ऐसा नहीं होना चाहिए।
- पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 20 से उधृत
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