तुम सुख, दुःख की अधीनता छोड़ उनके ऊपर अपना स्वामित्व स्थापन करो और उसमें जो कुछ उत्तम मिले उसे लेकर अपने जीवन को नित्य, नया, रसयुक्त बनाओ। जीवन को उन्नत करना ही मनुष्य का कर्तव्य है इसीलिए तुम भी उचित समझो सो मार्ग ग्रहण कर इस कर्तव्य को सिद्ध करो।
प्रतिकूलताओं से डरोगे नहीं और अनुकूलता ही को सर्वस्व मान कर बैठे रहोगे तो सब कुछ कर सकोगे। जो मिले उसी से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उच्च बनाओ। यह जीवन ज्यों-ज्यों उच्च बनेगा त्यों-त्यों आज जो तुम्हें प्रतिकूल प्रतीत होता है वह सब अनुकूल दिखने लगेगा और अनुकूलता आ जाने पर दुःख मात्र की निवृत्ति हो जायेगी।
- पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 17 से उधृत
प्रतिकूलताओं से डरोगे नहीं और अनुकूलता ही को सर्वस्व मान कर बैठे रहोगे तो सब कुछ कर सकोगे। जो मिले उसी से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उच्च बनाओ। यह जीवन ज्यों-ज्यों उच्च बनेगा त्यों-त्यों आज जो तुम्हें प्रतिकूल प्रतीत होता है वह सब अनुकूल दिखने लगेगा और अनुकूलता आ जाने पर दुःख मात्र की निवृत्ति हो जायेगी।
- पं श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
हारिये न हिम्मत, पृष्ठ 17 से उधृत
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