ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Saturday 12 March, 2011

जीवन देवता की साधना - आराधना

ऋषि ने पुछा - "कस्मै देवाय हविषा विधेम" अर्थार्त "हम किस देवता की आराधना करें" उसका सुनिश्चित उत्तर है आत्म-देव अर्थात जीवन देवता की।
पेड़ पर फल-फूल ऊपर से टपक कर नहीं लदते, वरन जड़ें जमीन से जो रस खींचती हैं उसी से वृक्ष बढ़ता है और फलता-फूलता है। जड़ें अपने अन्दर हैं, जो समूचे व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं। इसी प्रखरता के आधार पर वे सिद्धियाँ -विभूतियाँ प्राप्त होती हैं जिनके आधार पर आध्यात्मिक महानता और भौतिक प्रगतिशीलता के उभय-पक्षीय लाभ मिलते हैं। जिसने इस लक्ष्य को समझा है उन्होंने ही चरम लक्ष्य तक पहुँचने का राजमार्ग पा लिया।

 - पं श्रीराम शर्मा आचार्य
जीवन देवता की साधना - आराधना (२) - १.७

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