ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Sunday 13 March, 2011

नारी की क्षमता विकसित होने दी जाए

शताब्दियों से नर ने नारी का, पत्नी, पुत्री और माता का रिश्ता होते हुए भी बेतरह शोषण किया है। एक ओर उसे जेवर-कपड़े से सजाता रहा और गीत-वाद्यों में उसके रूप, यौवन की सराहना करने में अतिशयोक्ति का अन्त करता रहा। दूसरी ओर उसे पददलित, पराधीन और अपंग बनाने में भी कोई कमी न रखी, जिस तरह बेईमान दुकानदार लेने के बाँट अलग और देने के अलग रखकर बेईमानी पर पर्दा डाले रहता है।

पिछले दिनों जो किया गया है, उसका प्रायश्चित करके ही नर अपनी कलंक कालिमा धो सकता है। भूल सुधार की मॉंग है कि नारी पर से पाशविक प्रतिबंध अविलम्ब हटाये जाएँ, उसे पर्दा प्रथा से मुक्त किया जाए। प्रायश्चित की मॉंग है कि नारी का पिछड़ापन दूर करने के लिए नर न्यायानुकूल से बढक़र उसकी कुछ अतिरिक्त सहायता करे। बीमारी से छूटने पर दुर्बल व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ कराने के लिए उसके घर वाले कुछ अतिरिक्त पौष्टिक आहार आदि की सुविधाएँ देते हैं, उसी प्रकार, नर के अन्दर यदि आत्मा मौजूद हो तो उसे उसी के अन्याय से दुर्बल नारी को समर्थ, स्वावलम्बी बनाने के लिए कुछ अतिरिक्त सहायता देनी चाहिए। यह सहायता भोजन-वस्त्र के रूप में नहीं, बन्धनों से थोड़े अवकाश के रूप में दी जाए। उसे सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में प्रवेश करने दिया जाए । घर से बाहर निकालने में जो हजार शंका-कुशंकाएँ की जाती हैं, उस ओछेपन से अपने को विरत कर लिया जाय।

इन दिनों नारी के सामने समाज सेवा का कोई स्पष्ट चित्र, रूप या कार्यक्षेत्र नहीं है, इसलिए इच्छा होते हुए भी कुछ कर नहीं पाती। शिक्षा पर्याप्त हो गई। विवाह का योग नहीं बना। खाली समय काटना अखरा। बस वह अध्यापिका जैसी कोई नौकरी कर लेती है और फिर कुछ कमाने का चस्का पड़ जाने से तथा एक ढर्ऱा पड़ जाने से वह उसी क्रम को अन्त तक अपनाये रहती है। शिक्षा का यह कोई श्रेष्ट सदुपयोग नहीं है। जिनके घर में पैसे की तंगी है, वे नौकरी करें तो बात समझ में आती है। फिर जिन्हें इस प्रकार की कोई विवशता नहीं है, गुजारे में कठिनाई नहीं है, उन्हें नौकरी की ओर नहीं, नारी सेवा जैसे जीवन को धन्य बनाने वाले महान कार्य की ओर आकर्षित होना चाहिए। यदि ऐसा किया जा सके तो विश्व को चकाचौंध कर देने वाले अगणित नारी रत्न अपने देश में अनायास ही पैदा हो जाएगें।

 - पं श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (१.६४)

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