साधक का पहला लक्षण है - धैर्य! धैर्य की रक्षा ही भक्ति की परीक्षा है। जो अधीर हो गया, सो असफल हुआ। लोभ और भय के, निराशा और आवेश के जो अवसर साधक के सामने आते हैं, उनमें और कुछ नहीं, केवल धैर्य परखा जाता है। सदा प्रसन्न रहो। मुसीबतों का खिले चेहरे से सामना करो। आत्मा सबसे बलवान है, इस सच्चाई पर दृढ़ विश्वास रखो। यही ईश्वरीय विश्वास है। इस विश्वास द्वारा आप समस्त कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं।
- पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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