(१.) अपना एक संसार बसाइए और अलग रहिये; अलग अर्थात भौतिकता से हटकर।
(२.) अपनी इच्छाओं को मन कडा करके बदल डालिए।
(३.) कर्मयोगी की तरह से जियें।
(४.) जो चीजें पास हैं, उनका ठीक से इस्तेमाल करें, यथा - समय, श्रम, इन्द्रियां।
(५.) जो पास है, उसे अकेले न खाएँ, सारे समाज को बांटकर प्रयोग करें। यज्ञीय जीवन की वृत्ति विकसित करें।
- पं श्रीराम शर्मा आचार्य
(२.) अपनी इच्छाओं को मन कडा करके बदल डालिए।
(३.) कर्मयोगी की तरह से जियें।
(४.) जो चीजें पास हैं, उनका ठीक से इस्तेमाल करें, यथा - समय, श्रम, इन्द्रियां।
(५.) जो पास है, उसे अकेले न खाएँ, सारे समाज को बांटकर प्रयोग करें। यज्ञीय जीवन की वृत्ति विकसित करें।
- पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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