ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उस प्राण स्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

Sunday 27 March, 2011

चारों और से एक ही पुकार - बदलाव, बदलाव!

सौभाग्यशाली हम

इन दिनों चारों और परिवर्तन की बयार बह रही है। जिनकी आँखों पर पर्दा हो, धुंधलका छाया हो, वे संभवतः समय की इस विषमता को पहचान न पाएँ। जिनके चिंतन पर नकारात्मकता ही छाई हो, वे संभवतः यही कहें की कुछ नहीं होने वाला, दुनिया तो ऐसे ही चलती है, चलती रहेगी। थोड़ी उठापटक होकर रह जाएगी, कुछ नहीं बदलने वाला, पर जो दिव्यदर्शी हैं, जिन्हें भगवान की कृपा से समझदारी मिली है, जो परिवर्तनों द्वारा भविष्य का आंकलन कर पाते हैं, ऐसों को स्पष्ट दिखाई दे रहा है की २०११ से विश्वव्यापी परिवर्तनों की शृंखला आरम्भ होने जा रही है। चारों और से एक ही आवाज आने वाली है - परिवर्तन, बदलाव, बदलाव! अब इसे कोई रोक नहीं पायेगा। युग परिवर्तन का शुभारम्भ हो चुका है एवं यह आगामी दस वर्षों में पूरी तरह स्पष्ट दिखाई देने लगेगा। सौभाग्य की बात यह कि इस सब उठापटक की - वैचारिक परिवर्तन की धुरी हमारा प्यारा भारतवर्ष बनेगा।

एक महत्वपूर्ण भविष्यवाणी

श्री अरविन्द एवं स्वामी विवेकानंद ने अलग-अलग समय में एक भविष्यवाणी की थी, जो आज की इन घड़ियों पर लागू होती है। दोनों ने कहा कि ठाकुर श्री रामकृष्णदेव के जन्म (१८३६) के साथ ही युग परिवर्तन की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है, पर इसकी पराकाष्ठा वाला स्वरुप १७५ वर्ष बाद ही दृष्टीगोचर होगा। इतना समय संधिकाल का है। खेत में निराई-गुड़ाई होती है, बीज डालते हैं, पर अगले ही दिन फसल नहीं आ जाती। वह अपना समय लेती है। हर बड़ा परिवर्तन समय मांगता है। मौसम को ही ले लें। नवरात्री काल की प्रसवपीड़ा भरी अवधि से गुजरे बिना गर्मी की तपन शांत होकर ठंढक का एहसास नहीं होता। इसी तरह वसंत की पराकाष्ठा हेमंत की ठिठुरन को समाप्त कर चैत्र नवरात्र में गर्मी के आगमन के रूप में दिखाई देती है। कविश्रेष्ठ कालिदास नें भारत को षडऋतुओं वाला अद्वितीय देश माना है एवं प्रकृति के सौंदर्य का बड़ा विलक्षण वर्णन किया है। जो ऋतु-परिवर्तन के इस चक्र को समझते हैं, वे जानते हैं की बदलाव ही प्रकृति का धर्म है - जो आज है वह कल नहीं रहेगा, बदलकर रहेगा।

दोनों महापुरुषों के अनुसार हम १७५ वर्ष की वेदना भरी, प्रसव पीड़ा समान, संक्रांतिकाल की अवधि पार कर अब सतयुग की वापसी की ओर बढ़ रहे हैं और यह समय, कितना विलक्षण संयोग है की २०११ से हमारी आराध्य सत्ता परमपूज्य गुरुदेव के जन्म शताब्दी वर्ष की वेला में आया है। २०११ में परम पूज्य गुरुदेव के जन्म के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं तथा अब तेजी से चारों ओर हर क्षेत्र में बदलाव का क्रम और भी प्रखरता से होता दीखना शुरू हो रहा है। हम स्वयं देखें, एक विश्लेषण करें, तो पाते हैं की विगत सौ वर्षों में कई असंभव से दीख पड़ने वाले कार्य किस तरह से संपन्न होते चले गए। एक-एक करके उनका जिक्र करते हैं। आपको स्वयं स्पष्ट होता चला जायेगा।

धूल-धूसरित हुए राजमुकुट भी

सौ वर्ष पहले भारत गुलाम था; भारत ही नहीं अगणित राष्ट्र परतंत्रता में जी रहे थे। लगता ही नहीं था की हम कभी आजाद होंगे। एक हवा तेजी से बही। पहले १८५७ की क्रांति का समय आया और उसके ५० वर्ष बाद न जाने कहाँ से गोखले, तिलक, गाँधी, सुभाष, भगतसिंह जन्म लेते और भारत को आजादी दिलाते चले गए। वातावरण बनाने में महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंद एवं रमण महर्षि ने अपनी भूमिकाएँ निभाईं; वह अलग है। चारों और राजे-रजवाड़े थे - एक नहीं अगणित। सामंतशाही, जमींदारी, सहकारी के प्रचालन देखते-देखते समाप्त हो गए। राजमुकुट धूल-धूसरित होते चले गए। दास-दासियों की व्यवस्था थी। क्रांति अमेरिका में भी चली और अन्य देशों में भी। देखते-देखते उन्हें बेचने-खरीदने का प्रचलन समाप्त हो गया। सैकड़ों रखैल रखने वाले 'हरम' अब कहाँ हैं!

महाक्रान्ति की शृंखला

सतीप्रथा कभी इस देश पर कलंक बनी हुई थी। उसे धार्मिकता का बाना और पहना दिया गया था। राजा राममोहन राय जैसे महापुरुष आये और विधवा विवाह भी एक सच्चाई बन गयी। छूत-अछूत के बीच भेदभाव कितना जबरदस्त था। अभी कुछ दशक पहले तक भी एक अछूत-दलित को दबंग के घर के सामने बारात निकालने, उनके कुएँ से पानी पीने की मनाही थी। क्रांति का प्रवाह चला और देखते-देखते समता की धारा बहने लगी। छिटपुट प्रकरण आज भी होते हैं, पर यह कहने से कोई भी नहीं रोक सकता की आज सबको सामान अवसर प्राप्त हैं। हर वर्ग का व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। 'आरक्षण' शब्द का भले ही दुरुपयोग हुआ है, पर उसने सभी को समान अवसर प्रदान किए हैं। प्रतिभा है तो कोई जातिवाद के नाम पर दबा नहीं रह सकता। उसे पूरे अवसर मिलेंगे। यह बात आज से सौ वर्ष पूर्व सोची भी नहीं जा सकती थी।

नारी जागरण
परिवर्तन की यह शृंखला कहाँ तक गिनाएँ। नारीशक्ति को आज जो अधिकार प्राप्त हैं, यह उसके संघर्ष का तो परिणाम है ही, उस बदलाव की परोक्ष हवा के कारण भी है, जो सारे विश्व में बह रही है। जहाँ उसे दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता था, वहाँ आज बड़े-बड़े पदों पर सुशोभित है। पति-पत्नी, दोनों सामान अधिकार प्राप्त, कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहे हैं। पढ़ाई के अवसर दोनों को ही प्राप्त हैं। कभी दोनों में भेद माना जाता था। आज लड़की होना सौभाग्य का चिन्ह माना जाता है। नारी स्वयं अपनी अवमानना करे तो बात अलग है, पर समय ने उसे जहाँ लाकर खड़ा कर दिया है, वहाँ उसका उत्कर्ष ही उत्कर्ष दिखाई देता है। साक्षरता, स्वावलंबन, नेतृत्व, सैन्य बल, सुरक्षा, चिकित्सा, हर क्षेत्र में आज नारी नर से आगे ही है और यह एक महापरिवर्तन से कम नहीं है।

जन-जन को अधिकार

पंचायती राज की स्थापना, सहकारिता आन्दोलन आदि ने देखते-देखते जन-जन को अधिकार दे दिया है। कोई किसी तरह की शिकायत नहीं कर सकता। भारत में राईट टू एजुकेशन (आर. टी. आई.) एवं सूचना का अधिकार (आर. टी. आई.) ने एक क्रांति ही कर दी है। अब कोई भी चीज, सूचना गोपनीय नहीं रह सकती। जनहित में उसे जाहिर करना ही होगा। हमारी न्याय व्यवस्था ने बड़ी ईमानदारी से लोकतंत्र के एक सशक्त प्रहरी - मानीटर की भूमिका निभाई है। सबके लिए न्यायलय का द्वार खुला है। लोकहित याचिका दायर कर आप प्रमाणों के साथ किसी भी अपराधी को खुला-छुट्टा घूमने से रोक सकते हैं। यह बात अलग है कि अभी भी आजादी के बाद हम ६४ वर्ष बाद भी ब्रिटिश क़ानून को ही ढो रहे हैं, इसीलिए कई कमियाँ हैं, पर समयानुसार यह भी व्यवस्थित होगा एवं आगामी दशक इसका साक्षी बनेगा। हमारी 'जुडीशीयरी' कि पारदर्शिता पूरे विश्व में एक अलग मिसाल बनी है।

नहीं बचेगा अधिनायकवाद

आन्दोलन पूरे विश्व को प्रभावित कर रहे हैं। अधिनायकवाद आज से सौ वर्ष पूर्व तीन-चौथाई विश्व पर छाया था। सोवियत रूस, चीन उससे मुक्त हुए और देखते-देखते आधी आबादी खुलेपन कि श्वास से जीने लगी। चीन के तियानामन चौक की क्रांति ने चीन को बदल कर रख दिया तो १९८९ में टूटी बर्लिन की दीवार ने यूरोप व रूस का नक्शा ही बदल दिया। अभी पिछले दिनों इजिप्ट, ट्यूनीशिया, यमन, जोर्डन जैसे देशों में जो आजादी के आन्दोलन चले हैं, वे इसी महापरिवर्तन प्रक्रिया के अंग हैं। कहीं भी, किसी को भी अब दबाकर नहीं रखा जा सकता। उसे मुक्त होना ही पड़ेगा, यह समय की मांग है एवं उसे हर किसी को स्वीकार करना ही पड़ेगा, मन से या बेमन से। यह स्पष्ट होता जा रहा है।

संचार की क्रांति

कम्युनिकेशन के क्षेत्र में हुई क्रांति ने पूरे विश्व को एक ग्लोबल ग्राम बना दिया है। इन्टरनेट, मोबाइल, ट्वीटर, फेसबुक आदि ने वह काम कर दिखाया है, जो कोई एक व्यक्ति नहीं कर सकता था। सारे विश्व को एक भाषा में - एक जाल में  - वर्ल्ड वाइड वेब में पिरोने का कार्य इतनी तेजी से विगत पच्चीस वर्षों में हुआ है कि इसे देख कर बदलाव की गति पर हैरानी होती है। आज इन्टरनेट जन-जन की भाषा है। उस पर नेटकास्ट हो रहा है। कोई भी किसी को दबाकर नहीं रख सकता। सच्चाई जन-जन तक पहुँच कर ही चैन ले रही है। तानाशाही मनोवृत्ति वाले शासक भी उस पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। इसके साथ मीडिया की क्रांति ने जन-जन को एकदूसरे से जोड़ दिया है। १९८० तक भी हम उस दुनिया की कल्पना नहीं कर सकते थे, जो की आयपौड, आयपैड, मोबाइल, टी.वी. की दुनिया है। विज्ञान के इन अविष्कारों ने हर सूचना हर व्यक्ति तक पहुँचाने का जिम्मा लिया है।


नेतृत्व लेगा वैज्ञानिक आध्यात्म

क्रांति से धर्मतंत्र भी अछूता नहीं रहा है। प्रगतिशील आध्यात्म ही अब स्वीकार्य है। चाहे वह पोप की आवाज हो या भारत के धर्मदिग्गजों की, हर कोई अब जनता की पारदर्शी निगाहों के सामने है। कभी मठाधीश भी पोप की तरह, जमींदारों की तरह जीते थे, अब परिवर्तन की आंधी में सभी धन-संग्रह कर भोग-विलास में जीने की सोच भी नहीं सकते। उन्हें विवश हो कर लोकसेवा के आराधना के कार्यों में स्वयं को नियोजित करना पड़ रहा है। यह बदलाव इतनी तेजी से हो रहा है व आगामी एक दशक में इतनी तीव्रगति पकड़ेगा कि कल्पनातीत होगा। धर्म का अब वैज्ञानिक स्वरुप होने जा रहा है। वैज्ञानिक आध्यात्मवाद ही जन-जन की भाषा बनने जा रहा है; यह एक वास्तविकता है।

भ्रष्टाचार पर लगाम

बदलाव के अपने कई पहलू हैं - नकारात्मक भी। वैश्वीकरण की आंधी में भोगवाद भी बढ़ा, भ्रष्टाचार भी बढ़ा, प्रत्यक्षवाद ने आदमी को लालची भी बनाया और अपराधी भी, पर अब कोई यह सोचे कि ये सब जिन्दा रहेंगे, कालाधन ही जियेगा और संग्रह कि प्रवृत्ति पर कोई अंकुश नहीं रख पाएगा तो यह एक भवितव्यता मानी जानी चाहिए कि इन सब पर अब तेजी से नियंत्रण होने जा रहा है। पिछले दिनों भारतवर्ष सहित पूरे विश्व के पचास से अधिक देशों में हुए परिवर्तन बताते हैं कि असली सम्राट जनशक्ति है और अब कुछ भी छिपा नहीं रह सकता, चाहे वह स्विस बैंकों में छिपा धन ही क्यों न हो। आध्यात्मवाद तेजी से बढ़ता जा रहा है एवं हर व्यक्ति उसे स्वीकार करे, ऐसा वातावरण बनने जा रहा है। विज्ञान के उत्कर्ष कि बुराइयों को तेजी से नकारा जायेगा, छोटे-बड़े युद्धों कि संभावनाएँ निरस्त होंगी एवं मानव मात्र के लिए जीने, जन-जन के हित की योजनाओं को बनाने, लागू करने में ही शक्ति नियोजित होगी। स्वराज सही अर्थों में यही होगा।

हमारा यह दृढ़ विश्वास

गायत्री परिवार का अपनी संस्थापक सत्ता - आराध्य सत्ता की इस जन्म शताब्दी की वेला में ऐसा मानना है की युग-परिवर्तन की प्रक्रिया-महापरिवर्तनों की वेला - इक्कीसवीं सदी आ गयी है। २०११ से यह कार्य और भी तीव्र गति से चलेगा, गेयर बदलकर आगे बढ़ेगा और किसी के रोके नहीं रुकेगा। क्रांतियाँ तेजी से होंगी। सूक्ष्मजगत की विधि-व्यवस्था इन दिनों हिमालय की ऋषिसत्ताओं के हाथ में है। वे ही इन महापरिवर्तनों की व्यवस्था का संचालन कर रहे हैं। हमें तो निमित्तमात्र बनकर साथ भर चलना है। लक्ष्य एक ही है - मानव में देवत्व का उदय। इसी से धरती पर सतयुग आएगा एवं इसका प्रमाण मिल रहा है उषाकाल-प्रभातपर्व की इस वेला में उस अरुणोदय से, जो स्पष्ट दिखाई दे रहा है। किसी को भी इसमें संशय नहीं होना चाहिए। कहीं आप असमंजस में तो नहीं? यह समय बदलने का है। बदल जाइये

 - (अखंड ज्योति, मार्च २०११. पृष्ठ ५ - ७)

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